Monday, September 7, 2009

सावन

सावन आए, सागर छलकाए,
बारिश की बूँदें बिखराए

सपनों का आसमान छू लें,
मन मेरा ये जहाँ भूले
सपनों के पैर भी होते हैं,
अपने तो गैर नहीं होते हैं


सिमटी हुई हैं सारी उमंगें,
बिखरी है जाने कितनी ही रंगें
ख्वाहिशें साँस भी लेती है,
जिंदगी रुक के भी चलती है


देखा जो मैंने, तो है लगा ये,
लो झुक गया है आसमान जैसे
आरजू जैसे मन में पलती है,
नींद में करवट ये बदलती हैं


आँखों में मेरे अब इक चमक है,
अब हर तरफ़ तो तेरी झलक है
लम्हे भी अब तो कितने हसीं हैं,
महकी हुई सी अब ये ज़मीन है


अंगडाई लेती इक नयी सुबह है,
खुशियों को मिलती और इक वजह है
मन का मयूरा नाच उठा है,
सपनो पे और एक सपना सजा है

सावन फ़िर से तो आ तू,
आके फ़िर वापस न जा तू,
तुमसे ही खुशियाँ जवान हैं,
तेरे बिन ये सब कहाँ हैं