Tuesday, March 25, 2008

मैं चाहता हूँ!

मैं चाहता हूँ!

मैं डूब जाऊं ऐसे सागर में,
जिसका कोई किनारा ना हो!
मैं बरबाद हो जाऊं कुछ इस तरह,
जैसे मेरा कोई सहारा ना हो!
मैं रातों को अकेले इस तरह भटकूँ
जैसे मुझ जैसा कोई आवारा ना हो!
मेरी हालत भी कुछ यूं हो जाए,
कि मेरे जैसा कोई बेचारा ना हो!

मैं देखता हूँ
अपने आप को उस आईने में
ख्याल फ़िर से आते हैं
मैं फ़िर चाहता हूँ!

हवा के दो झोंके भी,
ना मिले मेरी साँस को!
राहत के दो कतरे भी,
ना मिले मेरी आस को!
प्रशंसा के दो शब्द भी,
ना मिले मेरे प्रयास को!
दो गज ज़मीन भी,
मिल ना पाये मेरी लाश को!

मैं सोचता हूँ
यूं तो इच्छाएं,
दम तोड़ने लगी हैं,
सपने ने तो दूर,
ख्यालों ने भी,
साथ छोड़ दिया है मेरा,
ना चाहते हुए भी,
मैं फ़िर चाहता हूँ!

मैं रोता जाऊं, रोता जाऊं,
अपने चारों तरफ़ अश्कों का समंदर बना दूँ,
वो समंदर जिसके मंथन से,
हँसी के दो वक्त भी मिल ना सकें!
मैं गिरता जाऊं, गिरता जाऊं,
मेरे पैर ही नहीं,
मेरा पूरा शरीर उस गर्त में हो,
जहाँ से मैं उठ के ऊपर आ ना सकूं!
मैं सोता रहूँ, सोता रहूँ,
दुनिया से इस कदर बेपरवाह,
कि ये नींद मेरी आखिरी नींद बन जाए,
जिस नींद से मैं जाग ना सकूं!
मेरा शरीर विलीन हो जाए,
पंचतत्वों मी इस तरह,
कि धुआं और राख क्या,
विचार भी बाहर आ न सके!

आप नहीं चाहते,
मेरी आखिरी चाह
पूरी हो सके!
बस इतना ही तो,
मैं माँगता हूँ!
बस इतना ही तो,
मैं चाहता हूँ!

Aakhiri Padaao

Do kadam main aur chal loon,
Aage ik thahraao hai.
Jee chuka hoon main bahut,
Ab akhiri padaao hai.


Dekhta hoon main kabhi,
Ateet ke galiyaron se,
Takrake chamak raha bachpan,
Umra ki deevaron se.
Yaad aata hai wo pal,
Jab seekha tha maine chalna,
Bas ek dag aage bharna,
Aur khushi se machal uthna.
Tha umangon se bhara,
Sapnon ke jhoole jhoolta,
Har ghadi jhagad padta,
Aur gusse ko phir bhoolta.


Aaj bhi rukte kadam,
Jahaan nadi ka bahaao hai.
Jee chuka hoon main bahut,
Ab akhiri padaao hai.


Bhool sakta main nahin,
Pathshala ke wo din,
Rah nahin pata tha main,
Jab khel-kood ke bin.
Lakshya mere mann me the,
Main josh se bharpoor tha,
Chhoti si safalta se hi,
Abhimaan me main choor tha.
Kuchh palon ne mujhe,
Kashta se rulaaya tha,
Ek jeet ne mujhe,
Phir josh se jagaaya tha.


Ab bhi ugra ho jaata hoon,
Jinpe mera prabhaao hai.
Jee chuka hoon main bahut,
Ab akhiri padaao hai.


Thak gaya hoon main abhi,
Ab chala jaata nahin,
Aadesh ab mastishk ka,
Kadmon pe asar dikhlata nahin.
Updesh hi banki hai ab,
Kar to kuchh pata nahin,
Ab chaal hai dheemi padi,
Daud ab pata nahin.
Bolta ab kam hi hoon,
Paripakva banne ke liye,
Sach to bas kuchh aur hai,
Yahaan shabda ka abhaav hai.
Buddhi aur vani me main,
Samanjasya dikhlata nahin,
Jee raha hoon main abhi,
par sans le pata nahin.


Jeevan ke is mod par,
Apne se mera duraao hai.
Jee chuka hoon mai bahut,
Ab akhiri Padaao hai.


Do kadam main aur chal loon,
Aage ik thahraao hai.
Jee chuka hoon main bahut,
Ab akhiri padaao hai.

Baarish

लाज से यूँ लाल होकर,
छुप गया है फिर वो सूरज,
बादलों की ओट में,
खो रहा है क्यूँ
ना जाने अस्तित्व अपना,
अब नहीं दिख रही
परछाई उसकी,
दिख भी कैसे पाएगी,
जब रंग ही इन बादलों का
है भयावह,
रंग के संग चाल
भी है उसकी बदली,
तब तो हैं ये
काले और मतवाले बादल।

शाम थोडी हो चुकी है,
तब तो था कुछ लाल सा,
वो घमंडी सूरज,
पर लाज से
आँखें मिला सकता न था,
चूर कर डाला
अभिमान उसका,
आज इन मतवाले काले बादलों ने।

दिखला रहा था
कुछ दिनों से
शक्ति अपनी,
जल रहा था
और जलाता जाता था
वो इस धारा को,
ले रहा था वो परीक्षा
धैर्य की, सब प्राणियों के
मानों कर रहा था
हार पर वो विवश
और दिख रहे थे
सब बिल्कुल बेबस

पर आज खुशी भी
स्पष्ट देखि जा सकती है
उन्ही चेहरों पर
उन्ही आंखों में
जहाँ थी विवशता
और बेवसी
क्यूंकि आज
चेहरों पर
उन आंखों में
है एक प्रतीक्षा
की कब गिरेंगी
बारिश की रिमझिम फुहारें
कब मिलेगी उनको राहत
इस जलन से
और कब मान लेगा
हार अपनी वो घमंडी सूरज