Monday, December 1, 2008

अन्तिम साँस

सपने बिखरे पड़े थे,
बेसुध पड़ा था वो,
बिल्कुल चेतनहीन और संवेदनहीन,
यादें थप थपा रही थी,
उसे नींद से जगाने की चेष्टा कर रही थी,
जबकि नींद कैसे आ सकती थी उसे,
नींद तो उड़ चुकी थी आँखों से।
स्मृतिपटल पर उभर रही थी,
खट्टी मीठी यादें!
कभी अश्रु की कुछ बूँदें ला रही थी पलकों पर,
तो कभी चेहरे पर मद्धम सी खुशी दिख जाती थी,
और कभी कभी कुछ विचित्र सी भाव भंगिमा,
कुछ अजीब सी स्मृति,
मानों झकझोर देती थी उसे,
सहम उठता था वो बरबस।

आँखें बंद होने लगी थी,
पहले थोडी सी खुली थी,
पूरा खोल पाने की उर्जा बची नहीं थी उसमें।
आँखें बंद होने का क्या कारण हो सकता था?
हो सकता है कुछ सोच रहा होगा,
या वो अतीत में खो चुका होगा,
पलक झपक गयी होगी।
यूँ तो उसका शरीर,
पहले से ही शिथिल पड़ा हुआ है,
ऊपर से ये बंद आँखें,
कुछ और ही कहने लगती थी,
संदेह का आवरण रच जाती थी
लेकिन नहीं मौत के आगोश में नहीं था,
साँसे चल रही थी उसकी,
हाँ! थोडी धीमी जरूर हो गयी थी धड़कन।

कहीं मौत के विकराल परिदृश्य ने,
उसे तोड़ तो नहीं दिया था,
कहीं इसी भय से तो नहीं झुक गयी थी उसकी पलकें,
मृत्यु निस्संदेह एक भयावह सच है!
इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि,
मृत्यु को बहुत नजदीक पा रहा होगा वो,
चिंता की लकीरें इसी भय की उपज होंगी!
हाँ वो बेवस दिखा था,
वो निस्सहाय दिखा था,
सिसक दिखी थी चेहरे पर,
लेकिन तड़प नहीं दिखी थी,
शायद न मौत से लड़ने का साहस बचा था,
न जीने की अदम्य इच्छा बची थी उसमें।
आत्मसमर्पण की मुद्रा में था वो,
हार चुका था वो जीवन से,
उसका संघर्ष दम तोड़ चुका था।

शायद इसीलिए याद कर रहा था,
अपने अच्छे बुरे पलों को,
अतीत के गलियारे में टटोल रहा था,
अपनी ही समीक्षा करने में लगा हुआ था,
और क्यूँ नहीं करता!
यहीं से जुटा रहा था वो,
अपने लिए एक अप्रतिम साहस,
जो उसे इस कष्ट में भी,
नियंत्रित रखे हुए था।
सच तो ये था की,
एक अजीब सी तृप्ति दिख रही थी,
उसके मुख मंडल पर,
जीवन को जीतने का अभिमान तो नहीं था,
परन्तु अपनी साँसों के साथ,
न्याय करने का संतोष अवश्य
था।

उसकी धड़कने और धीमी होने लगी थी,
कभी तेज़ भी हो जाती थी अचानक।
जीवन-मृत्यु के साथ,
मानों उसका द्वन्द अपने चरम पर था,
साँसें लम्बी हो चली थी,
अकेलापन गहरा हो चला था,
उदासी गहरी हुई,
लेकिन वो क्षणिक ही थी,
मुस्कान की एक किरण निकली,
और चेहरे पर बिखर गयी,
उसने एक और लम्बी साँस ली,
ये उसकी अन्तिम साँस थी।

5 comments:

रश्मि प्रभा... said...

chetan,awchetan ko sahi shabd diye .......achhi rachna,bahut achhi

Prakash Badal said...

स्वागत है आपका

Unknown said...

I am feeling very nice to see ur poetry on the blog and I will request you to please continue to write this. You have made very good composition of the word. Finally, I want to say that: Aap to mere nazron mein bahut achhe Kavi ho gaye hain.

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

Unknown said...

आपका चिठ्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है, खूब लिखें, हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं… धन्यवाद…